मंगलवार, 18 नवंबर 2014

On Rain and Thunder

बटेउ ओ केरो खडको 
चाल्यो बरखा रो चरखो 

गोबर अर फूस सुं ढंकी गलियां 
में भर बह्यो गन्दळो जळ 
नगरी रे ढसते परकोटे पर 
फट पड़ी है पीपळ री कोम्पळ 

थार री माटी रा कण 
नाचे है धोरा री चोटी पर 
आभा घुमड़े रे
नथुना में सौरम माटी री भर
आज तो सड़पांला
तीखी बूंदा रा झोलां में

नयोड़ी छतरी ने परखो
चाल्यो बरखा रो चरखो

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें