रविवार, 21 जून 2015

जूतमपैजार

पसीने से तरबतर
दढ़ियल दद्दा ने
अपने घिसे फ्रेम और मोटे लेंस वाले चश्मे को
नीले- सलेटी चैक्स छपी लुंगी पर साफ़ किया
और नए-नवेले अंधड़ में से
सड़क के पार देखा
इमारतों पर जमी धूल की चद्दरें बदल दी गयीं हैं
झाड़ दिए गए हैं पेड़ों के लिबास
हवाएं फटे गले से घोषणा करती हैं
वर्षा के आगमन की

वर्षों से जारी हानिकारक ज़र्दे के सेवन से
भूरे-कत्थई पड़े दांतों पर उन्होंने
जीभ फिराई और
नमक, पानी और धूल का मिश्रण
सड़क के किनारे थूक दिया

बारिश की जूतमपैजार के समक्ष उन्होंने अपना
झुर्रियों भरा चेहरा पेश कर दिया;
किसी कारण से उन्होंने
अपनी नवजात पोती को याद किया
जिसने चलाये थे उनके चेहरे पर
नन्ही लातें और घूंसे
और मूत्र की गर्म धार

(बुढ़ापा-)

रविवार, 14 जून 2015

बोरियत

बोरियत भरी कुर्सी से
तशरीफ़ को बड़ी मुश्किल से उठा
दद्दी पोर्च की रेलिंग की ओर चल पड़ी

पोतों की सनसनाती गेंदों,
चिलचिलाती धूप से तपे संगमरमर के फर्श,
सूखती हुई बड़ी
इत्यादि को पार किया
रेलिंग पर पहुँचकर
नाक उठाकर मौसम का जायज़ा लिया,
दूर पटरियों पर धड़धड़ाती रेल की और
लानतें उछालीं
और वापस निराश सी दिखती
अपनी बोरियत की बोरी पर जा बैठी।


(बुढ़ापा-)