रविवार, 29 जनवरी 2017

झालावाड़

(गर्भनाल के दिसंबर, २०१६ अंक में मेरी दो कविताएँ प्रकाशित हुईं थीं. ये तीसरी कविता लौटा दी गयी थी)

अढाई पौने-तीन दशक के पड़ाव पर उसे
झालावाड़ के बीहड़ों में किसी सड़क ने अपने पाश में बाँधा
और निगल गई

उसके आगे का सारा जीवन उसने
उधर की
चिपचिपी, गीली अंतड़ियों में बिताया

वहां, जहाँ पानी कम, जहर ज्यादा है
खेतों में मिट्टी कम, पत्थर ज्यादा हैं
जहाँ के बाशिंदे असमय बूढ़े होकर झुक जाते हैं
मृत्यु के सजदे में
मोक्ष के इंतज़ार में
जो कभी नहीं आता

ठीक उसी प्रकार
जैसे, नयी और पुरानी सरकारों के कोई भी जुमले या वादे
नहीं पहुँचते वहां
न ही असर दिखाते हैं कोई

वहाँ गलियों में टट्टियाँ बिखरी हैं
वहाँ हर घर के आंगन में एक बच्चे की लाश गड़ी है
वहाँ हर लड़के के हाथ में गुलेल है
लाशों, टट्टियों और गुलेलों के सहारे
वो लड़ते हैं आज़ादी के लिए
सरकारों से और एक दूसरे से

बुहारी लेकर उसका चलना वहाँ की गलियों में
देता नहीं किसी को उम्मीद
सुलझाता नहीं उसकी ही निराशा

शुक्रवार, 13 जनवरी 2017

विघ्न

तुम कूद पड़े
हज़ारों उफनते नागों के मध्य

तुम्हारी प्रदूषित फुफकारों ने,
तुम्हारी दहाड़ती कदमताल ने
रोएँ खड़े कर दिए चट्टानों के
मिटा दीं पानियों की यादें
अब वो बहते नहीं हाथियों के गालों पर
जब वो सूंड से सहलाते हैं
अपने मरे हुए बच्चों के कंकालों को
वो पानी बर्बाद नहीं कर सकते
दिन-ब-दिन विकराल होते मौत के मंज़र पर

तुमने काट डाले उनके रास्ते
तुम खा गए उनके घर
तुम बढे जाते हो आगे, उनकी आत्माओं की कंदराओं में

सोमवार, 9 जनवरी 2017

दिवास्वप्न

अगर मेरे हाथ ढले होते किसी  बहुत ही मजबूत और कठोर धातु में,
मैं उखाड़ फैंकता 

कागज़ के आवरण
दीवारें-खिड़कियाँ-अलमारियाँ
सीमेंट-ईंटें-टाइल्स
सड़कें-मेट्रो-रेल की पटरियाँ
शहर के विशाल फैलाव
जंगल-जानवर-नदियाँ
घाटियाँ और उनकी हवाएँ
देश और दुनियाएँ


चीथड़े-चीथड़े कर देता
और होम देता आवाज़ों के बवंडर में
जो मैंने बनाए होते अपने हाथों से ही 


पर मैं माँस-हड्डी का कमज़ोर मानव
कोई कार टकरा जाए तो शिनाख्त करना मुश्किल हो जाता है

काश मैं दुर्दम्य होता ...
जब मैं चलता तो खरोंचें पड़ जातीं
धरती की छाती पर
उछलता तो भूचाल आ जाता
मैं बदल देता इस दुनिया का चेहरा अपने माकूल
ये सब सोचते वक़्त मैं नहीं सोचता
क्रमिक विकास के बारे में,
गाया थ्योरी के बारे में

बस जमाता जाता दुनिया के टुकड़े
अपने हिसाब से