मंगलवार, 7 जनवरी 2020

काश / आशीष बिहानी

काश कि एक ईश्वर होता
शब्द और शक्ति का बना ब्रह्म
देश और काल के धागों में बसी चेतना होती
होते पाप-पुण्य, नैतिक और अनैतिक

काश कि हम जन्म लेते वापस, और जीते जीवन को
सुधार कर पाते ग़लतियों का
जब तक जी न लेते हर क़तरे को दक्षता से हम
काश कि कोई कहीं सुन पाता
हमारी कराहें और किलकारियाँ
बुतों में बैठा, हवा में घुला
लड़ने आते हमारे लिए देवी-देवता
हमारी लड़ाईयाँ
शक्ति ख़ुद स्वीकार करती बलि
काश कि एक ईश्वर होता
तो हम उसे दे देते ज़िम्मेदारी
ख़ुद को माफ़ करने की
और ठीक करने की,
अपनी मूर्खता के विकराल परिणामों को