मंगलवार, 21 नवंबर 2017

कठोर

रेत और ठण्ड ने यहाँ की रातों के चेहरे
कठोर कर दिए हैं
उनमें धोरों की छाहें और बादलों की सलवटें हैं
उनकी आँखों में सितारों की साफ़-सुथरी झिलमिलाहट है
पथरीली राहों पर वो बिछातीं हैं प्रलय का शोर
और छोटे मोटे झरने
लबालब नदियों का खालीपन उनकी आँखों से बहता है
इस्पात के जंजाल में उनकी खनखनाती हँसी

अन्धकार में घिसटते विस्थापितों से विमुख वो
चाँद का दीर्घ निःश्वास छोड़तीं हैं
वो अपने शरणार्थियों
को पुचकार कर बुलातीं नहीं हैं
बस देखतीं रहतीं हैं भावहीन
जैसे कोई देखता है किसी रेल के जाने को
जिसमें उसे चढ़ना नहीं है

शुक्रवार, 17 नवंबर 2017

बकरी के लिए रसगुल्ले


हिनहिनाते हुए स्कैनर्स
तेज, गोल मटोल और दक्षिण को झुके हुए
खुली अलमारियों में
इतिहास की घोड़ेदार किताबें
जैसे कोई छुई-मुई


बारह बहियाँ, दो सौ पेट
अपने में ब्रह्माण्ड समेट

नहींनहीं
येक्यालिखदिया
फिरसेलिखनापड़ेगा

तेज, गोल मटोल और दक्षिण को झुके हुए
गुम्बदों के भाल पर चीथड़े सूखे हुए
स्कैनर्स -- हिनहिनाए
भरा गुड़कता लोटा, खोट समेत ही लौटा
उसकी धृष्टता पर हमें खेद है
पर इसमें रेल का देरी से चलना कारण नहीं है
हटाओयारकुछऔरलिखतेहैं
साक्षात् अल्ला की मर्ज़ी से
हैं?

अल्ला? अल्ला यहाँ लूणी के घाटों की देवी है
सब घाटों की
उनके सर पर काँटों का ताज़ है
और अधोवस्त्र के तौर पर स्क्विड के छुअन्तुओं का घाघरा
हम और किसी अल्ला को नहीं जानते
---
तो साक्षात् अल्लाबीबी की मर्ज़ी से
सिसीफस पत्थर लुढ़काता बीबी के गुणगान करता आगे बढ़ा
चोटी पर पहुँचकर उसने सूखते चीथड़ों में से एक
बीबी के नोन-इश्टोप सेवक पहाड़ी बकरे को दिया
और पत्थर को दक्षिण दिशा की ढाल पर रवाना किया
ग्रामीणों ने बीबी की पीठ की ओर से आते पत्थरको
उनका प्रसाद माना
और वेदों ने उनका गुणगान किया
देवताओं ने पुष्पवृष्टि की
जनसाधारण से जयजयकार किया
प्रसाद लुढ़कता हुआ हेडीज़ पर बने बाँध से जा टकराया
चट-चट-चट करके बाँध फटा
बाँध की डूब में फंसे जीवों और वनस्पति की आत्माओं
को मुक्ति प्राप्त हुई
हेडीज़ अब लूणी बन गयी
पांच साल में एक बार बहती है
घाट उसके किनारे फिर भी बना दिए गए हैं
सभी पर अल्लाबीबी की मूर्तियाँ स्थापित हैं
श्रद्धालुओं का मेला लगता है
जो कोई प्रसाद पाता है, धन्य हो जाता है
स्कैनर्स-लोटे-रेलें हिनहिनाए
वेदों ने उनका गुणगान किया
देवताओं ने पुष्पवृष्टि की
बोल अल्लामाता की जय

अबठीकहै

अरे ठीक कैसे है?
खुली अलमारियों में
इतिहास की घोड़ेदार छुईमुई किताबें?
दिव्य दर्शन से भरे बारह बहियाँ, दो सौ पेट?
उनका क्या हुआ?
लोटे के प्रासंगिक होने का क्या आशय है?
रेल के अप्रासंगिक होने का क्या आशय है?
.
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सुण भेंणचोद
सुबह से पडारा पसार के बैठा
बीबीगान को ध्यान से सुने नहीं है
मैं तब से भूखा-प्यासा अरड़ा रहा हूँ
प्रसाद पा के निकल यहाँ से मुफ़्तखोर


चलो भाय
आज के आनंद की जय
जहां मतिमंद घूमते होकर अभय
सर ऊंचा करके
फ़ोकट में ज्ञान प्राप्त करते
बीबी की उस पावन भूमि की जय
हर हर बहादेव!

बुधवार, 15 नवंबर 2017

चिल्लाओ

गला फाड़ के चिल्लाओ
उगलो किसी ज्वालामुखी की भांति
इतना पागलपन
कि दिशाएं किसी मुद्दत से फ्लश हुए संडास की तरह
ठस जाएं.
ऊटपटांग आकृतियों-आवाजों-गंधों की हिसहिसाती भीड़ में
जमाना भूल जाए कि सीधी पंक्तियों में
ब्लॉक-बाई-ब्लॉक
हमें जमाने की कोई कोशिश भी हुई थी.