बुधवार, 14 फ़रवरी 2018

कॉलोनी - 1

(द व्यूज़ एक्सप्रेस्ड हियर डू नॉट रिफ्लेक्ट दोज़ ऑफ़ दि ऑथर)
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रिहायशी इलाक़े में
अलग-अलग मंज़िला औक़ात वाले
हम सैकड़ों पक्के मकान
ऊटपटांग तरीक़े से जमघट बनाए
बैठे हैं उकडू
अपनी-अपनी गोद में
मोटरसाइकलों और कारों का जमावड़ा बिछाए
फुसफुसाते हैं
ठंडी हवा में ठिठुरते
ताकि सुनाई न दे
टेम्पल्स-चर्चेज़-सुपरमार्केट्स
इत्यादि पूजा के स्थलों को
हमारी हठभरी ईशनिंदा


आए बड़े पवित्रता और अनुशासन के गड़गुम्बे
कौनसे वो आज़ाद हैं इंसान की ख़रीद-फ़रोख्त से
ऊँच-नीच से
कमसेकम घरों में लोग रहते हैं प्राकृत अवस्था में
अपनी फितरतों के सबसे क़रीब

यों धूनी रमाकर
या सुफैद परिधान ओढ़कर
खूबसूरत टोपियाँ पहनकर
कोई भुला नहीं देता नग्न फिरने का आनंद

दिन भर चन्दन मलकर
अपने परिवेश का मल दूर करके
इत्र से नहाकर भी
अंततः इन लोगों के शरीर से
निकलेगी तो टट्टी ही