बुधवार, 23 दिसंबर 2015

समतल

मैं बैठ गया
एक सर्वत्रगामी बस की सभी सीटों पर
देखे कुछ हज़ार भिखारी बुड्ढे...
मृतप्राय
जिनकी दायीं आंख में एक दरार थी
जिनके कम्बलों में छेद थे
जिनकी लाशें उठने पर
धरती के कोने हो गए समतल
मिट गए दयनीय मुस्कुराहटों के गुत्थीदार गुम्बे

(बुढ़ापा - ५)