शुक्रवार, 1 सितंबर 2017

धुर


किसी मुटाए हुए आदमी की अनामिका में पहनी
अंगूठी सी तुम
हतप्रभ समय-शंकु पर नकेल की तरह आरूढ़
भूतकाल की सारी घटनाएँ सिमट-गुँथकर
आतीं हैं तुम तक
और सारे संभावित भविष्य
तुमसे उत्प्रेरित
तुम्हारे होने से लक्षित
देश-काल का सुलझ जाना रिक्त व्योम में
आप्लावित इन्द्रियों के मुड़े-तुड़े बड़बड़ बिम्ब

तुम्हारा होना जैसे
ब्रह्मा की मृत्यु