सोमवार, 4 अप्रैल 2016

चेहरा

आसमान और जमीन के दैनिक कार्यक्रम में
कुचले हुए ऐसे कुछ क्षण होंगे
जब तुम्हें ज़्यादातर चीज़ें याद नहीं रहेंगी

तुम्हें याद नहीं रहेगा कि उस दिन क्या वार था
स्कूल में क्या पढ़ाया था
कोहनी पर कहाँ चोट आई थी
किसने बाग़ से खदेड़ कर भगाया था
या कौनसी सब्जी बनी थी

तुम भूल जाओगे कि
उस दिन टीचर ने खींचकर तमाचा मारा था
और कक्षा के छुट्टे सांडों ने मैदान में खूब दौड़ाया था
तुम भूल जाओगे
कि तुम्हारी गोद में बैठे मासूम पिल्लों की माँ
से तुम मुश्किल से जान बचाकर भागे थे
और अस्पताल के पिछवाड़े में पड़ी गन्दगी में तुम भागे  थे
एक अदना डाम बचने की ख़ातिर

पर उसी उहापोह में कहीं
मम्मी ने अपनी बनी अधहरी-अधखरी स्वेटर
तुम्हारे बालों में फसे तमाम ताम-झाम को
हटा कर फँसा दी तुम्हारे गले में
और इस अनुक्रम के बाद दोनों कन्धों को झंझोड़ दिया
हलके से
उस घर्षण से पैदा हुई गर्मी को गले से लगाए
तुम पोपली हंसी हंसोगे अपनी खाट में पड़े
कहीं दूर भविष्य में
कभी नहीं भूलोगे
हरे जालीदार अँधेरे में जद्दोज़हद करना और
अंततः गुफा के प्रकाशित अंत पर पाना
मम्मी का प्यार से लदा चेहरा