गुरुवार, 28 मई 2015

उगल

बाबू साब को लगता था
कि उनके आस-पास घूमते
हाड़-माँस के पुतले सब इंसान हैं,
और दिल के बोझे को
ऑफिस की डेस्क पर रखकर
ली जा सकती है
चैन की साँस।

कलम के रजिस्टर पर घिसटने के
प्रवाह में
उन्होंने उगल दिए पेषणी के पत्थर
और लार में डूबी भोजन की लोइयां
घृणा के साथ
बॉस ने उनकी तरफ देखा
और हवा में जुमला उछाल दिया
"कंगाली में आटा गीला"

उनकी ऊपर की साँस ऊपर रह गयी
नीचे की साँस नीचे।
तुरंत घूमकर
बटन सी आँखों में झाँका
और पाया वही मिथकीय जानवर
जिसके वास्तविक होने की संभावना से
आजतक वो भय खाते आए थे।
उनके बोझे में जुड़ गया एक पत्थर…
एक विचार,
जिससे वो नफ़रत कर सकते हैं
आजीवन।
(दुनिया के बाशिंदे-)

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