शुक्रवार, 22 मई 2015

रामराज्य

सलेटी आँखों वाले एक बुढऊ
सर्पिलाकार यातायात के
बगल में
लम्बे-लम्बे डग भरते,
लोगों से टकराते
सर हिलाते भागे जा रहे हैं
बदहवास
यातायात के अंत की ओर
जहाँ ख़त्म होता है
कोलाहल, प्रदूषण और इंसानों का सैलाब;

जहाँ मिलते हैं
निर्वाण और सठियाहट,
कच्ची ईमलियाँ और नकली दाँत,
साफ़ कीचड़ और हथकढ़ वाले गेडिये,
अख़बार और पाटे,
मसालों की गन्ध और मुल्ला की अजान
टेढ़े-मेढ़े संकरे रास्ते और
स्वस्थ गायों के छोड़े पोठे।

काले बादलों की आड़ में
कहीं छुपा रामराज्य
जिसकी खोज में बिता दिए
ऋषि-मुनियों ने
युग और कल्प

(बुढ़ापा-२)

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