सोमवार, 8 अक्तूबर 2018

नामकरण किया नहीं इसका दो साल से, पता नहीं क्यों

मजारों के दरवाज़े
तोड़ दिए गए हैं
भग्न कर दिए गए हैं
मंदिर
थरथरा रहे हैं मसीहाओं
के बुत
और लोट रहे हैं भांति भांति के गुम्बद
अवशिष्टों के ढेर में 


ढोंगी श्रद्धालुओं की भीड़
घुस गयी है बारहदरी में
जूते लिए ही
बरसा रहे हैं वो अपनी श्रद्धा
संगमरमर के फ़र्श पर
खटखटकर चलते हुए
पण्डे, पादरी और मुल्ले रो रहे हैं
विकृत शक्लें बनाकर
धाड़ें मारते

राजधानी के अन्धेरे कमरों में
खाली कटघरों को सजा सुनाते हैं न्यायाधीश
कमेटियां बनेंगी
मुआवज़े का बँटवारा होगा विजेताओं के बीच
प्रतिनिधि जाएँगे
मानवों की भोंडी नकलों के पास
देवहीन, दैवहीन
पुनः प्रतिष्ठित करेंगे
विश्वास और श्रद्धा की दुकानें
कहेंगे,
"परेड, तीनों तीन कॉलम में
झुक जाओ आगे की ओर कच्छे उतार कर;
हम तुम्हारे पिछवाड़ों पर ख़ुशी पोत देंगे!"

उनके निर्देशों का
अक्षरशः पालन होगा
क्योंकि सम्मान और अपमान के मसले
बहुत महत्वपूर्ण हैं हमारे लिए

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