रविवार, 3 दिसंबर 2017

फैरो

वहाँ गाँव के बाहर
धोरों के बीच टट्टी करते बुड्ढे का सर
किसी ने दग्गड़ से कुचल दिया
शिनाख्त नहीं कर पाए उसके नज़दीकी रिश्तेदार

रेबीज़ से सनके कुत्तों का झुण्ड
बावला हुआ सड़क से उतर गौशाला के पास
घाटी में गहरे उतर गया
उनकी लाशें कई किलोमीटरतक छितराईं पायी जायेंगी
फूली, गंधाती

धोरे पर बबूलों के झुरमुट
और गन्दगी के ढेरों के बीच कोई लोमड़ी
क्रोध भरी हूक रही है

सुबह सेना के काफिले के आख़िरी ट्रक के निकलने से पहले
एक हिरण धैर्य खो बैठा
चीलें उसके अंतरंगों को कई दिन खाएंगी
उसके हड्डी और चमड़े के ओरीगामी में बदल जाने तक

चींटियों के नगर पर पपड़ियाई भूमि पर
चींटियाँ फिरतीं हैं कूदती फाँदतीं
किसी फैरो की तरह चमकती स्वर्णिम देह लिए
एक समाज में रहने में निष्णात

राजधानियों के लोग यहाँ की तस्वीरें देख कर नाक भौं सिकोड़ते हैं
और कहते हैं कि कोई जीना सिखाओ इन गवारों को.

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