रविवार, 14 जून 2015

बोरियत

बोरियत भरी कुर्सी से
तशरीफ़ को बड़ी मुश्किल से उठा
दद्दी पोर्च की रेलिंग की ओर चल पड़ी

पोतों की सनसनाती गेंदों,
चिलचिलाती धूप से तपे संगमरमर के फर्श,
सूखती हुई बड़ी
इत्यादि को पार किया
रेलिंग पर पहुँचकर
नाक उठाकर मौसम का जायज़ा लिया,
दूर पटरियों पर धड़धड़ाती रेल की और
लानतें उछालीं
और वापस निराश सी दिखती
अपनी बोरियत की बोरी पर जा बैठी।


(बुढ़ापा-)

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