रविवार, 18 जनवरी 2015

मुस्कुराहट

सवेरे के परदों
ने दिन को रास्ता दिया
और सूरज की रोशनी
धड़धड़ाती हुई उतर आई
टेबल से फर्श पर

दातुन, साबुन और किताबें गर्माहट पाकर
खुश से हो गए
परदे बाहर वाले पेड़ की पत्तियों
की भाँति
मचलना बंद कर चुके

ननिहाल के
गोबर नीपे फर्श पर बने
मांडणों सी
पारदर्शी, गोलमटोल आकृतियाँ
क्रीड़ाएँ करने लगीं
दृष्टिपटल पर

सुग्गों का एक जोड़ा
पिंजड़े का दरवाजा खुला पाकर
बिना मुझे साथ लिए ही
फट्ट-फट्ट कर उड़ गया

बलिश्त भर मुस्कुराहट
ताज सी आ बैठी उसकी
ठुड्डी पर
झड़ गए दो दर्ज़न सितारे
प्यार के मारे
दिन दहाड़े ही

(प्यार-३)

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