गुरुवार, 19 मार्च 2015

सुरक्षा

पीवर लैदर का बैग सहलाते हुए अंकल
अचानक ठिठक कर पास की
दूकान का बोर्ड देखने लगे,
उत्सुकता और जिज्ञासा से …

नीम के पेड़ की पत्तियों के बीच घुसा
जंग लगा बोर्ड
साफ सुथरे तरीके से कुछ
कह नहीं पा रहा था,
सो अपनी जांघ के सहारे
एक ग़ायब-गूंगा ढोलक
बजाते हुए
झड़ती पत्तियों को घूरने लगे।

कुछ दूरी पर
फुटपाथ से उतर कर
असंख्य सूखी पत्तियों का मरघट
रुकी नाली के रिसाव में मिलकर
कीचड़ का रूप ले रहा था;
हर दो मिनट में
हंगामा मचाती सिटी बस
गोली की तरह निकलती,
कीचड को गिट्टी में बराबर कर जाती।

अंकल ने भयातुर होकर देखा
हरीतिमा के अस्थि-पंजरों का कुचला जाना;
अपनी ऐनक से
शोर, पसीना और निराशा पोंछकर
उन्हें एक बेहतर जगह पर
खड़ा होने का निश्चय किया
बस पकड़ने के लिए,
सुरक्षित महसूस करने के लिए।

(दुनिया के बाशिंदे-२)

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