भूभ्रंश

धरती की बिवाईयों से शब्द रिस रहे थे, मैंने जाल की उधेड़बुन पर चढ़ा दिए हैं।

मंगलवार, 3 मई 2016

आशीष बिहानी कविता पाठ : "सत्य" ("अन्धकार के धागे" से)

प्रस्तुतकर्ता Ashish Bihani पर 12:26:00 pm कोई टिप्पणी नहीं:
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