बोर
आँखों में रोष भरे
वो कोशिश करता है
एक चुटकुला सुनाने की
और सभा की चुप्पी उसे नागवार गुजरती है
रोष का उमड़ आता ज्वार
टकराता है
दीवारों से
जैसे तेज रफ़्तार से चलती कोई ट्रेन टकराती है
कीचड के विशाल ढेर से
एक चिपचिपा गीलापन ढ़क लेता है उसके कमरे की दीवारों को
उसकी हड्डियों में जंग लगता है
उसके घावों से पौधे उग आते हैं
कड़कड़ाकर कोई उठता है अपनी जगह है
उठने के श्रम से थककर बैठ जाता है अगले ही क्षण
बोरियत के ढेर पर लोग फेंकते हैं अधीरता से
पानी और फटे हुए रुमाल
डुबा नहीं पाते फिर भी
दबोच
एक पथरीले चेहरे वाली आग चबाती है किसी झोंपड़ी को
कर्णभेदी शोर के साथ
हवाओं को छाती पीटकर ललकारते हुए
कोई बाघ गर्दन दबाता है अपने शिकार की
हड्डियों का चटखना लाउडस्पीकर पर लगाए
कोई शरीर विघटित होता है
नाक को बींध देने वाली दुर्गन्ध के साथ
देखने वालों की आँखों में उतरे भय का
स्वाद अपनी जीभ पर लुढ़काते हुए
आँखों को टिकाए लक्ष्य
वो आगे बढ़ता है
वो कोई आम दानव नहीं है
जब तुम उससे आँखें मिलाते हो तो वो सीधे
घुस जाता है तुम्हारी हड्डियों में
और रेंगता हुआ खाता है तुम्हें सालों तक
तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध ले जाता है तुम्हें
मजबूरी के डामरी दलदल में
खड़ताल
सुबह सुबह वो नहलाये ताज़ातरीन बाल फैलाए
खड़ताल बजाती हुई निकलती है
गाँव की पहली आँख खुलने से भी पहले
पतली कच्ची कीचड़ लदी गलियों के
उबकाहट भरे जंजाल में
भोंडे और कामुक भक्ति गीत गाते हुए
वो बिछाती है घटनाओं के नए चादर
पिछले दिन के खून, विष्ठा और मीठी नमी पर
जिनका कचूमर बना देंगे हम अगले दिन अपने कदमों से
बिना रीसाइकिल किये
बिना महसूस किये
हम कुलबुलाते दैनिक चर्या से निकलेंगे
सड़कों पर सड़कें बिछ्तीं जाएँगी
किसी दिन वो छुपा देंगी हमारे घरों की अनगढ़ बदसूरती
किसी दिन हम बस असहाय से झांकेंगे अपने अपने गड्ढों से
सुनते हुए उसकी घंटों पहले बजाई खड़ताल की गूँज
भाईसाब
भाईसाब तुम तुर्रमखां नहीं कोई
तुम्हारे जैसे तराशे नक्श फैक्ट्री में बनकर आते हैं
मेरी दुकान पर लाइन से खड़े होकर मुंहबोली रक़म देकर फ्रूट खरीदते हैं
तुमको क्यों पड़ी है मोलभाव करने की
कैशबैक देंगे तुम्हारी ई-वॉलेट पर
तुम हमें ये बताओ की तुम कौन हो और कहाँ रहते हो
नहीं, नहीं. ये पद और कर्म के ढकोसले नहीं
तुम्हारे फड़फड़ाते दिल की मांसपेशियों के बीच
खून और दिमाग़ को अलग करने वाली पाल पर
तुम्हारी जाँघों की संधि में
तुम्हारे जठर की दीवारों को सुरक्षित रखने वाली ग्रंथियों के मुँह पर
तुम कौन हो.
मैं क्या कहता हूँ कि इधर सीधे सादे लोगाँ की बीच किधर घुस गए!
जेब के कड़े हो क्या?
प्राडक्टिव नहीं होना क्या तुम्हें?
तुम घर जाओ, आर्डर प्लेस करो
बताते हैं तुमको कि अगली चीज़ क्या खरीदनी है.
आँखों में रोष भरे
वो कोशिश करता है
एक चुटकुला सुनाने की
और सभा की चुप्पी उसे नागवार गुजरती है
रोष का उमड़ आता ज्वार
टकराता है
दीवारों से
जैसे तेज रफ़्तार से चलती कोई ट्रेन टकराती है
कीचड के विशाल ढेर से
एक चिपचिपा गीलापन ढ़क लेता है उसके कमरे की दीवारों को
उसकी हड्डियों में जंग लगता है
उसके घावों से पौधे उग आते हैं
कड़कड़ाकर कोई उठता है अपनी जगह है
उठने के श्रम से थककर बैठ जाता है अगले ही क्षण
बोरियत के ढेर पर लोग फेंकते हैं अधीरता से
पानी और फटे हुए रुमाल
डुबा नहीं पाते फिर भी
दबोच
एक पथरीले चेहरे वाली आग चबाती है किसी झोंपड़ी को
कर्णभेदी शोर के साथ
हवाओं को छाती पीटकर ललकारते हुए
कोई बाघ गर्दन दबाता है अपने शिकार की
हड्डियों का चटखना लाउडस्पीकर पर लगाए
कोई शरीर विघटित होता है
नाक को बींध देने वाली दुर्गन्ध के साथ
देखने वालों की आँखों में उतरे भय का
स्वाद अपनी जीभ पर लुढ़काते हुए
आँखों को टिकाए लक्ष्य
वो आगे बढ़ता है
वो कोई आम दानव नहीं है
जब तुम उससे आँखें मिलाते हो तो वो सीधे
घुस जाता है तुम्हारी हड्डियों में
और रेंगता हुआ खाता है तुम्हें सालों तक
तुम्हारी इच्छा के विरुद्ध ले जाता है तुम्हें
मजबूरी के डामरी दलदल में
खड़ताल
सुबह सुबह वो नहलाये ताज़ातरीन बाल फैलाए
खड़ताल बजाती हुई निकलती है
गाँव की पहली आँख खुलने से भी पहले
पतली कच्ची कीचड़ लदी गलियों के
उबकाहट भरे जंजाल में
भोंडे और कामुक भक्ति गीत गाते हुए
वो बिछाती है घटनाओं के नए चादर
पिछले दिन के खून, विष्ठा और मीठी नमी पर
जिनका कचूमर बना देंगे हम अगले दिन अपने कदमों से
बिना रीसाइकिल किये
बिना महसूस किये
हम कुलबुलाते दैनिक चर्या से निकलेंगे
सड़कों पर सड़कें बिछ्तीं जाएँगी
किसी दिन वो छुपा देंगी हमारे घरों की अनगढ़ बदसूरती
किसी दिन हम बस असहाय से झांकेंगे अपने अपने गड्ढों से
सुनते हुए उसकी घंटों पहले बजाई खड़ताल की गूँज
भाईसाब
भाईसाब तुम तुर्रमखां नहीं कोई
तुम्हारे जैसे तराशे नक्श फैक्ट्री में बनकर आते हैं
मेरी दुकान पर लाइन से खड़े होकर मुंहबोली रक़म देकर फ्रूट खरीदते हैं
तुमको क्यों पड़ी है मोलभाव करने की
कैशबैक देंगे तुम्हारी ई-वॉलेट पर
तुम हमें ये बताओ की तुम कौन हो और कहाँ रहते हो
नहीं, नहीं. ये पद और कर्म के ढकोसले नहीं
तुम्हारे फड़फड़ाते दिल की मांसपेशियों के बीच
खून और दिमाग़ को अलग करने वाली पाल पर
तुम्हारी जाँघों की संधि में
तुम्हारे जठर की दीवारों को सुरक्षित रखने वाली ग्रंथियों के मुँह पर
तुम कौन हो.
मैं क्या कहता हूँ कि इधर सीधे सादे लोगाँ की बीच किधर घुस गए!
जेब के कड़े हो क्या?
प्राडक्टिव नहीं होना क्या तुम्हें?
तुम घर जाओ, आर्डर प्लेस करो
बताते हैं तुमको कि अगली चीज़ क्या खरीदनी है.