आंधी के झकझोरे पेड़
ने झाड़ दी
घंटों से संजोई बारिश
भिगो दिया मुझे
जैसे, चन्द्रकला, तुम
फट पड़ती हो खिलखिलाहट से
मेरा कोई उद्दंड मज़ाक सुनकर
बरसा देती हो सैकड़ों थपकियाँ
ने झाड़ दी
घंटों से संजोई बारिश
भिगो दिया मुझे
जैसे, चन्द्रकला, तुम
फट पड़ती हो खिलखिलाहट से
मेरा कोई उद्दंड मज़ाक सुनकर
बरसा देती हो सैकड़ों थपकियाँ
जैसे थपथपाकर मेरी दादी माँ
बाजरे की लोई को
बदल देती हैं
नम सतह वाली चपटी रोटी में
वैसे ही चलता हूँ मैं तुम्हारी बगल में
स्वेद-अच्छादित
अवाक्,
मुस्काता बेढ़ब
बाजरे की लोई को
बदल देती हैं
नम सतह वाली चपटी रोटी में
वैसे ही चलता हूँ मैं तुम्हारी बगल में
स्वेद-अच्छादित
अवाक्,
मुस्काता बेढ़ब
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