सोमवार, 18 मार्च 2024

दिशासूचक

१.


जैसे बहुत सारे पतले-पतले तार 

एक साथ मरोड़े गए हों 

वैसे गुंथी सी लकीरें 

कई गाड़ियों की बत्तियाँ

पल भर के लिए प्रवाह के गुच्छ से बाहर आकर 

पुनः लौट जाती हैं प्रवाह में 

कुछ देर तक तुमने सोचा होगा कि हाइवे छोड़कर 

मुड़ लिया जाए गली में

ओझल हो जाया जाए इस झमेले से 

फिर घबराकर मोड़ लिया 

स्टीयरिंग फिर से 

ठीक प्रवाह के केंद्र की ओर  

और बढ़ चले समाज की गर्दन की ओर पुनः 


मैप्स के वैकल्पिक पथ सुझावों ने भी चुप्पी साध ली है 

गोया कि गहन चिंतन मनन 

का दारोमदार उठाया हो 


चुम्बक सा खींचता प्रवाह 

निषिद्ध करता है ठीक से साँस लेना 

लहरों के बीच के बुलबुले काफी होने चाहिए 

आख़िर संचय शक्ति का, है ज़रूरी 

किसी बाँध, किसी सिग्नल पर काम आवेगा 

अभी बगल में दौड़ती किसी गाड़ी से 

तुम्हारा क्या ही लेना-देना है 


पर प्रवाह की गति अब मंथर हो चली है 

सब इन्द्रियाँ व्यस्त है अब 

स्टीयरिंग पर हाथ कस गए हैं 

कुछ पुलिस वाले लट्ठ लिए 

ऐसे दिखना चाहते हैं जैसे हांक रहें हो एक तालाब को 

अचानक तुम्हें क्रोध आता है 

दौड़ कर सड़क पार करती एक महिला पर 

तुम पहचान सकते हो विकृत भृकुटियाँ 

अगल-बगल के शीशों के पीछे

अंततः दबा ही देना होगा 

ब्रेक


२.


हर मिनट लेन बदलते, गरियाते, भोंपू बजाते 

कुछ हज़ार ड्राईवर 

पच्चीस मीटर बाई पच्चीस मीटर में 

इकट्ठे हुए 

नफासत से सटे, पैक होकर 

बेतरतीब दिशासूचक बने बिखरे हैं 

शहर की धमनी में एक विशालकाय थक्के की भांति


तुम्हारे कपाल की नसें गांठों में कसमसा रहीं हैं 

तुम्हारे पेट गुड़गुड़ाते हैं भूख से तिलमिलाते 

माथे की सलवटों पर इस्तरी सी करते

कारों के बीच से सड़क पार करने का रास्ता ढूंढते लोगों

की जान बख्शते

तुम 


ट्रैफिक सिखाता है तुन्हें सोचने की तमीज़

या बद-तमीज़, पक्के से कहना मुश्किल है 

जहाँ समस्याओं की जड़ तक पहुँच कर 

मुर्गियों और अण्डों की बहस में तुम नहीं पड़ते 

बस मान लेते हो कि 

तुम्हारी कार की चहारदीवारी 

विभाजन रेखा है प्रकृति और पुरुष की 

परस्पर गुंथे तार शायद बाँट लेते हो कुछ इलेक्ट्रान 

पर उनके बीच लगभग तिकोनी घाटियों में भरी हवा 

काफी है कहने को कि 

"माइंड योर ओन बिझनस"


कि मानवता-मानवता खेलना अच्छी बात है 

पर प्रेम की पींगें तुम अपने मोहल्ले में घुस कर बढ़ाना 

तुम्हारे खिलखिलाते भंवर 

तुम्हारे ट्रांस-ह्यूमन सरोकार 

परे धरो 

और ये देखो कि गला फाड़ कर चिल्लाते 

बड़बोले की गाड़ी तुमसे कितनी समानांतर है

दिशासूचकों के अवकलन-समाकलन में 

तुम्हारे सलामत निकलने की कितनी सम्भावना है 

किस तरफ़ बन्दर घुड़कियाँ 

और किस तरफ़ साझा झल्लाहट भेजी जानी है 

कि बत्ती हरी हो 

और तुम ऐसा एक्सेलरेटर दबाओ

रुको फिर 

अपने अंतर्मन में जाकर ही 

सोमवार, 7 दिसंबर 2020

चुप्प चीख

 

थरथराते हुए

बॉल पेन का

गोल गुल चलने लगता है 

मलेरिया बुखार सा 

एक क्षण रफ़्तार से

फिर अवरोह में मंथर

गहरे गड्ढे में गिरने से ख़ुद को रोकता 


कोई सांड 

लकड़ी के दरवाज़े पर बार-बार 

सिर मारता है 

दरवाज़ा पसीने से लथपथ, चरमराता है 

फिर धीमे से साँस लेता 

अपनी जगह वापस आता है 

अपने जीवन के बचे खुचे क्षण गिनता 


फिर

वो दहाड़ कर टूटता है

अँधेरी गहराइयों में उसके

परखच्चे उड़ जाते हैं


परखच्चे उड़ जाते हैं

पन्नों के, जिल्द के

गुल खुरचता है खाली पन्नों को इतना

ऊपर नीचे दाएं-बाएं

किसी चीख की अवशिष्ट तरंग सा


नीचे, जमीन हो जाती है तितर-बितर

क्षीण हो जाता है एक ग्रह का केंद्र

और

बॉलपेन झल्लाता घिसटता रहता है

अँधेरी, रिक्त दिशाओं में

शनिवार, 14 मार्च 2020

सुरजीत गग से दो शब्द (with translation)

सुरजीत गग, अब कमलेश तिवारियों के साथ-साथ
दाभोलकर भी मारे जाने लगे हैं
कि मौत का दामन थामने के लिए
किसी रंगीले रसूल को गे कहने तक
जाने की जरुरत नहीं है,
एक तो कुछ ग़लत नहीं है गे होने में,
ग़लत जरूर है, एक पीडोफाइल को गे कहना
याद हो तो कुछ समय पहले
पुतिन ने भी यही ग़लतफ़हमी पाल ली थी
नौ साल की बच्ची को अपनाने का
कोई और तरीक़ा नहीं होता था पुराने दिनों में, सुना मैंने
 
सुरजीत गग, मैं उम्मीद करता हूँ
कि तुम जीते रहो
कि कलबुर्गी वाला हश्र न कर दें
नए हिन्दू आज के
तुम्हारा
जिनकी डिक्शनरी में ईशनिंदा भी अब
इम्पोर्ट कर लिया गया है
बजाय विज्ञान के नए विचारों के
 
सुरजीत गग, अब वो दिन आ गए हैं कि
मरने के लिए बस तुम्हें हज़ारों देवी-देवताओं
में से कोई इक्कादुक्का चुनने होंगे
और किसी बुत पर मूत देना होगा
और किसी को घर वापस लाने के लिए
शास्त्रार्थ की ज़रूरत नहीं पड़ेगी
 
फ्रीडम ऑफ़ स्पीच के हत्यारों की मय्यत में
क़समें खाने की प्रथा अल्लामा इकबाल ने शुरू की
और अब पढ़े लिखे भारत के हर मंच से उबलते हैं नारे
सुरजीत गग, FIR दर्ज़ कराने वालों को माफ़ करदो
पिछड़े कानूनों और रस्मों के मूर्ख रखवालों को माफ़ करदो
ख़ुद को भी, क्योंकि तुमने थोड़ा आसान टारगेट चुना
ये सब नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं 
 
जब पकड़ रहे हैं लोग इमामों-धर्मगुरुओं-पादरियों के रंडापे
कहीं कोई कार्टूनिस्ट न बना दे उड़ती गधी, "बुराक़" की जगह
खंजीर पर सवार दढ़ियल मुहम्मद
राम के हाथ में तपस्या करते शूद्र की लाश
मूसा के मारे नवजात
इन्क्विज़िशन की छोड़ी क्षत-विक्षत लाशें
क्योकि उसकी कूंची काट दी जाएगी
जैसे टी. जे. जोसेफ़ के हाथ 
 
सुरजीत गग,
इन सभी को चिल्लाना है
सुनना नहीं
तुम लिखते चलो
कहो कि किसी दिन तुमने अगर
सारे बुत ढहा दिए
तो "ला इलाहा इल्लिल्लाह"
का नंबर भी आ जाएगा
 
हम सभी उठाएं अपने अपने हाथ
तो किसी दिन गिर जाए हर बाड़, हर पर्दा
गल जाएँ बंदूकें, एटम बम्ब और फ़तवे
खील खील होकर बिखर जाएँ
तानाशाहों की मूर्तियाँ और
लाल, खून से सनी किताबें

Surjeet Gag, alongside Kamalesh Tiwaris
Dabholkars are also being killed now
To get closer to death,
you don't need the call
the Rangeela Rasool, gay.
First, there is nothing wrong with being gay
what is wrong, is to call a pedophile, gay
Putin had also expressed his misunderstanding
a while ago
There was no other way
of sheltering a nine year old, I heard
 
Surjeet Gag, I hope
that you live on
that the new Hindus of today
don't do you in, like Kalburgi
They have now imported blasphemy, too,
in their dictionaries
 
Surjeet Gag, the day has come
when you just need to
select one or two
out of the thousands of gods and goddesses
and piss on one's idol
To bring someone back home, nowadays,
you don't need a shastrarth
 
Allama Iqbal started
the tradition of swearing allegiance
in the wakes of the murderers
of freedom of speech
And today, from every stage of the educated India,
slogans are raised
Surjeet Gag, forgive those who filed an FIR against you
forgive those who guard draconian laws and
rituals of antiquity
forgive yourself, too, for picking an easy target
these people know not what they are doing 
 
When people are catching imams-gurus-pastors
red-handed, whoring
Goodness forbid, if a cartoonist draws
a bearded prophet Muhammad, riding
instead of a flying donkey, "Buraaq",
a pig
dead body of a meditating shoodra
in the hands of Ram
newborns killed by Moses
disfigured dead bodies, left behind by the Inquisition
Because, his pen will be cut down
like the Hands of T. J. Joseph
 
Surjeet Gag, all these people
just want to shout
not listen
Keep writing
maybe someday, when you have razed down
all the idols,
you will accost "la illah illillah", too
should we all raise our hands,
these walls, these purdahs
will all fall
guns, atom bombs and fatwas dissolved
We will shatter to the ground,
the statues of dictators
and red books
bathed in blood.
 
 
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मंगलवार, 7 जनवरी 2020

काश / आशीष बिहानी

काश कि एक ईश्वर होता
शब्द और शक्ति का बना ब्रह्म
देश और काल के धागों में बसी चेतना होती
होते पाप-पुण्य, नैतिक और अनैतिक

काश कि हम जन्म लेते वापस, और जीते जीवन को
सुधार कर पाते ग़लतियों का
जब तक जी न लेते हर क़तरे को दक्षता से हम
काश कि कोई कहीं सुन पाता
हमारी कराहें और किलकारियाँ
बुतों में बैठा, हवा में घुला
लड़ने आते हमारे लिए देवी-देवता
हमारी लड़ाईयाँ
शक्ति ख़ुद स्वीकार करती बलि
काश कि एक ईश्वर होता
तो हम उसे दे देते ज़िम्मेदारी
ख़ुद को माफ़ करने की
और ठीक करने की,
अपनी मूर्खता के विकराल परिणामों को

बुधवार, 25 सितंबर 2019

जहाँ अंत में / हमें अपनी ख़ुशी मिलेगी (एन बोयर, २०११)


क्रांतियों की कहानी, धुंधले विचारों की कहानी है
कंधे उचकाएँ, न उचकाएँ,
खड़े रहें, बिना सोच-विचार कुछ करें,
सोचते हुए कुछ करें, लिखे जाएं या न लिखे जाएं,

इतस्ततः घूमती औरत या लड़की हों,
जेब में धूल लिए एक औरत या लड़की
          चौकीदार की आँख में झोंकने को
                        धुएँ का एक बादल उड़ाने को

कोई अनजानी सुफैद बदली
जंगम और स्थावर शरीरों के बीच
किसी आम अकथ की,
          कहानी-सरीखी अकहानी
प्यारा-सा चलताऊ अनगढ़ कुछ --
                                             हथियार बने या नहीं, नहीं, नहीं.

कितना कम सोचा गया है श्वास लेने को
चलने को और न चलने को
मस्ती करना चाहने और बस, मस्ती कर लेने को
हर कोई बस स्वर्ग को झपटा चाहता है
          और कोई स्कूल में सशरीर नहीं है अब.

क्रांतियों की कहानी, हठधर्मियों की कहानी है
          उनके लड़खड़ाते दुराग्रहों पर
                                      टेसू बहाती:

सटीक चीज़ कहना बेवकूफ़ी है आजकल
विचार हैं नदी के पानी पर छड़ी मारते से

इंसान का हेतु नहीं रहा एक प्रिंटर का कागज़
अनगढ़ है घड़ा ही

(अनुवाद: आशीष बिहानी)