रेत और ठण्ड ने यहाँ की रातों के चेहरे
कठोर कर दिए हैं
उनमें धोरों की छाहें और बादलों की सलवटें हैं
उनकी आँखों में सितारों की साफ़-सुथरी झिलमिलाहट है
पथरीली राहों पर वो बिछातीं हैं प्रलय का शोर
और छोटे मोटे झरने
लबालब नदियों का खालीपन उनकी आँखों से बहता है
इस्पात के जंजाल में उनकी खनखनाती हँसी
अन्धकार में घिसटते विस्थापितों से विमुख वो
चाँद का दीर्घ निःश्वास छोड़तीं हैं
वो अपने शरणार्थियों
को पुचकार कर बुलातीं नहीं हैं
बस देखतीं रहतीं हैं भावहीन
जैसे कोई देखता है किसी रेल के जाने को
जिसमें उसे चढ़ना नहीं है
कठोर कर दिए हैं
उनमें धोरों की छाहें और बादलों की सलवटें हैं
उनकी आँखों में सितारों की साफ़-सुथरी झिलमिलाहट है
पथरीली राहों पर वो बिछातीं हैं प्रलय का शोर
और छोटे मोटे झरने
लबालब नदियों का खालीपन उनकी आँखों से बहता है
इस्पात के जंजाल में उनकी खनखनाती हँसी
अन्धकार में घिसटते विस्थापितों से विमुख वो
चाँद का दीर्घ निःश्वास छोड़तीं हैं
वो अपने शरणार्थियों
को पुचकार कर बुलातीं नहीं हैं
बस देखतीं रहतीं हैं भावहीन
जैसे कोई देखता है किसी रेल के जाने को
जिसमें उसे चढ़ना नहीं है