मैं तुम्हारी उदासी पर लिख रहा था
धागे गूंथ रहा था तुम्हारी ख़ामोशी में से
तुम फिच्च से हँस दीं
घुटे-पिसे लफ़्ज़ों की एक उतावली धारा
थूक दी तुमने
और तोड़ दी मेरी कविता
(चंद्रकला-९)
धागे गूंथ रहा था तुम्हारी ख़ामोशी में से
तुम फिच्च से हँस दीं
घुटे-पिसे लफ़्ज़ों की एक उतावली धारा
थूक दी तुमने
और तोड़ दी मेरी कविता
(चंद्रकला-९)
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