बोरियत भरी कुर्सी से
तशरीफ़ को बड़ी मुश्किल से उठा
दद्दी पोर्च की रेलिंग की ओर चल पड़ी
पोतों की सनसनाती गेंदों,
चिलचिलाती धूप से तपे संगमरमर के फर्श,
सूखती हुई बड़ी
इत्यादि को पार किया
रेलिंग पर पहुँचकर
नाक उठाकर मौसम का जायज़ा लिया,
दूर पटरियों पर धड़धड़ाती रेल की और
लानतें उछालीं
और वापस निराश सी दिखती
अपनी बोरियत की बोरी पर जा बैठी।
(बुढ़ापा-३)
तशरीफ़ को बड़ी मुश्किल से उठा
दद्दी पोर्च की रेलिंग की ओर चल पड़ी
पोतों की सनसनाती गेंदों,
चिलचिलाती धूप से तपे संगमरमर के फर्श,
सूखती हुई बड़ी
इत्यादि को पार किया
रेलिंग पर पहुँचकर
नाक उठाकर मौसम का जायज़ा लिया,
दूर पटरियों पर धड़धड़ाती रेल की और
लानतें उछालीं
और वापस निराश सी दिखती
अपनी बोरियत की बोरी पर जा बैठी।
(बुढ़ापा-३)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें