लाल ऑंखें, भारी सर और बैंगनी परछाइयाँ लेकर
मैं घूमा स्मृतियों के चौबारों में
गलियों में
तलघरों की घुटी हुई सीलन सूंघते हुए
मैं तैरा भारी-भरकम हवा में
मैंने देखे खड्डे,
अँधेरे के कान,
खुरदरी सफेदी,
लोगों के ढक्कन…
किसी कला प्रदर्शनी के
अनुशाषित दर्शक की भाँति
ऊटपटांग कलाकृतियों से बचकर निकलते हुए।
काँटों के बिस्तरों के छह अंगुल
ऊपर से
मैंने मज़ाक उड़ाया विश्व का
युधिष्ठिर सा अभिमान लिए,
सत्यों से लिपटी अधखायी आइसक्रीम
मैंने छोड़ दी पिघलने को
जून की तपती दोपहर में
पुनर्विचार की खिड़कियों पर लगे पर्दों से
सलवटें ग़ायब हैं
कोरे हैं सारे कागज़ इन मेजों पर
दीवार पर लटके दिशा-निर्देश
पूछते हैं एक महत्वपूर्ण प्रश्न,
आख़िर मैंने किया क्या था?
(दुनिया के बाशिंदे-३)
मैं घूमा स्मृतियों के चौबारों में
गलियों में
तलघरों की घुटी हुई सीलन सूंघते हुए
मैं तैरा भारी-भरकम हवा में
मैंने देखे खड्डे,
अँधेरे के कान,
खुरदरी सफेदी,
लोगों के ढक्कन…
किसी कला प्रदर्शनी के
अनुशाषित दर्शक की भाँति
ऊटपटांग कलाकृतियों से बचकर निकलते हुए।
काँटों के बिस्तरों के छह अंगुल
ऊपर से
मैंने मज़ाक उड़ाया विश्व का
युधिष्ठिर सा अभिमान लिए,
सत्यों से लिपटी अधखायी आइसक्रीम
मैंने छोड़ दी पिघलने को
जून की तपती दोपहर में
पुनर्विचार की खिड़कियों पर लगे पर्दों से
सलवटें ग़ायब हैं
कोरे हैं सारे कागज़ इन मेजों पर
दीवार पर लटके दिशा-निर्देश
पूछते हैं एक महत्वपूर्ण प्रश्न,
आख़िर मैंने किया क्या था?
(दुनिया के बाशिंदे-३)
प्रभावी ... स्वयं से किया गया वार्तालाप ... जिसका उत्तर शायद स्वयं से ही मिले ...
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