गांव के बाहर
दो सेवानिवृत् डोकरों ने
कंकड़-पत्थरों से अपने-अपने किले चिण रखे हैं।
उनके नाम हैं,
"हम जड़ हैं"
और
"हम चेतन हैं"।
बड़ेरों की सिखाई नीतियों और
सालों की मगज़मारी से उपजी कूटनीति
का अनुसरण करते हुए
वे एक-दूसरे पर हमले करते हैं
पुनः बनाते हैं खोये हुए परकोटे,
पाटते हैं तकनीकी खामियाँ।
सैद्धांतिक है उनके उत्तर-पडूत्तर,
सत्य ही उद्देश्य है।
उसे पाने की दौड़-धूप में
अनंत के दोनों छोरों के बीच कहीं भी
नहीं रुकते वो…
उनका होना और नित्य लड़ना जरुरी है,
है विश्व के हित में।
(बुढ़ापा-१)
दो सेवानिवृत् डोकरों ने
कंकड़-पत्थरों से अपने-अपने किले चिण रखे हैं।
उनके नाम हैं,
"हम जड़ हैं"
और
"हम चेतन हैं"।
बड़ेरों की सिखाई नीतियों और
सालों की मगज़मारी से उपजी कूटनीति
का अनुसरण करते हुए
वे एक-दूसरे पर हमले करते हैं
पुनः बनाते हैं खोये हुए परकोटे,
पाटते हैं तकनीकी खामियाँ।
सैद्धांतिक है उनके उत्तर-पडूत्तर,
सत्य ही उद्देश्य है।
उसे पाने की दौड़-धूप में
अनंत के दोनों छोरों के बीच कहीं भी
नहीं रुकते वो…
उनका होना और नित्य लड़ना जरुरी है,
है विश्व के हित में।
(बुढ़ापा-१)