भूभ्रंश
धरती की बिवाईयों से शब्द रिस रहे थे, मैंने जाल की उधेड़बुन पर चढ़ा दिए हैं।
मंगलवार, 3 मई 2016
आशीष बिहानी कविता पाठ : "सत्य" ("अन्धकार के धागे" से)
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