गुरुत्वाकर्षण को धता बताकर
विषधरों की तरह उठती हैं
उसकी अयाल से लटें
हवा में
उसके मस्तक के चारों ओर
उसकी आँखों में है
उद्दंडता की आग
जो भस्मीभूत किये देता है
उसके विरोधियों को,
सही या गलत।
वो रहता है ज्वलंत
अज्ञान की पपड़ियों के ऊपर या नीचे
आवश्यकता की भित्ति के दोनों ओर
रोशनी के पटल पर
और अँधेरे की गहराइयों में
थार के रेगिस्तान में
और
मुल्तान की अमराइयों में
करता है विद्रोह
विपत्ति से
प्रकृति से
वो मार सकता है
हिरण्यकश्यप को
अंदर, बाहर,
दिन में, रात में,
मर्त्य बन, अमर्त्य बन,
जल, थल और नभ में --
अपनी गोदी में,
देहलीज पर रखकर भी
ब्रह्मा देखते ही रह जाते हैं
अपने चारों मुख टेढ़े किये-किये
अपनी मूर्खताओं का विकराल रक्तरंजित भंजन
विषधरों की तरह उठती हैं
उसकी अयाल से लटें
हवा में
उसके मस्तक के चारों ओर
उसकी आँखों में है
उद्दंडता की आग
जो भस्मीभूत किये देता है
उसके विरोधियों को,
सही या गलत।
वो रहता है ज्वलंत
अज्ञान की पपड़ियों के ऊपर या नीचे
आवश्यकता की भित्ति के दोनों ओर
रोशनी के पटल पर
और अँधेरे की गहराइयों में
थार के रेगिस्तान में
और
मुल्तान की अमराइयों में
करता है विद्रोह
विपत्ति से
प्रकृति से
वो मार सकता है
हिरण्यकश्यप को
अंदर, बाहर,
दिन में, रात में,
मर्त्य बन, अमर्त्य बन,
जल, थल और नभ में --
अपनी गोदी में,
देहलीज पर रखकर भी
ब्रह्मा देखते ही रह जाते हैं
अपने चारों मुख टेढ़े किये-किये
अपनी मूर्खताओं का विकराल रक्तरंजित भंजन
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